आसनों का उद्देश्य
"आसनम् योग सिध्यर्थ काय शोधन हेतु ना "
स्वस्थ रहने के लिए बहुत सी पद्धतियां है परन्तु योग के अतिरिक्त सभी पद्धतियों में कुछ ना कुछ दोष है.जैसे पहलवानी, जिम, टेनिस आदि. प्रारंभ में यह सब पद्धतियां सुखद लगती है लेकिन बाद में शरीर को रोगी बना देती है. लगभग सभी पद्धतियो में किसी अंग विशेष पर ही ध्यान दिया जाता है.जिसके कारण शरीर के अन्दर की नस- नाडिया, माँस-पेशिया गठीली हो जाती है जिसके कारण शारीर में रक्त संचरण ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है तथा प्राणवायु का लाभ नहीं मिल पाता है. इसके विपरीत योगासन से शरीर के अंग- प्रत्यंग में खिचाव आता है जिससे शरीर के अन्दर जितनी भी नस-नाडिया, माँस-पेशिया है वे सभी लचीली हो जाती है. इस कारण से शरीर स्वस्थ, बलवान, ओजपूर्ण बनता है तथा मन की एकाग्रता बढती है.
अन्य व्यायाम करने के बाद शरीर में थकान आती है और आराम करने की इच्छा होती है जबकि योगासन करने के बाद शरीर में थकान नहीं आती व कार्य करने की क्षमता बढती है.
योग दर्शन
योग का अर्थ दो चीजों को आपस में मिलाना या उनका जुड़ना है. जैसे शहद व काली मिर्च को मिलाने पर औषधि बन जाती है जिसमे से न तो काली मिर्च और न ही शहद को अलग किया जा सकता है. अतः दो चीजों के एक होने पर दोनों का अलग-अलग अस्तित्व समाप्त हो जाता है.
हमारे लिए योग का अर्थ सीमित ( शरीर को स्वस्थ रखने का एक तरीका ) ही नहीं है बल्कि
हमारे लिए योग का अर्थ प्रभु से मिलना है. अर्थात अपना अस्तित्व समाप्त कर प्रभुमय होना है, प्रभु के तदनुरूप होना है.
योग के अंग
(1) यम
(2) नियम
(3) आसन
(4) प्रणायाम
(5) प्रत्याहार
(6) धारणा
(7) ध्यान
(8) समाधि
" हरि हर जगह मौजूद है, लेकिन नज़र आता नहीं.
योग साधन के बिना, कोई उसे पाता नहीं."
" योग पथ अति सरल साधन, इसमें कुछ खटका नहीं.
कोई राही आज-तक, इस राह में भटका नहीं."
" शांति सुख जो चाहता, आसक्तियों का त्याग कर,
बंधन से मुक्ति के लिए, मन राग से वैराग कर,
वैराग होते ही तुरंत मन एकाग्र हो जायेगा,
बिछुड़ा हुआ तू फिर उसी में मिल जायेगा."